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जीवन का सच : किताबें

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हमारा जीवन क्या है? हमारा जीवन क्यों है ? हम इस धरती पर किस लिए है?

इन बातों का उत्तर साधारण मनुष्य तब सोचता है जब वह परेशानियों के  सागर के बीच फसा होता हैं । किताबें हमारे जीवन में कितना महत्व रखती हैं इस बात का अंदाजा आपको किसी भी साहित्य की एक किताब को पढ़ने मात्र से लग सकता है, और न  सिर्फ साहित्य कोई भी किताब चाहे वह भौतिक विज्ञान हो, रसायनिक विज्ञान हो  या जीव विज्ञान आप को जीवन का रस प्रदान कर सकती है पर मैंने खासकर साहित्य का नाम इसलिए लिया क्योंकि मनुष्य साहित्य से अनजाने में अपने व्यवहार में अपने विचार में और अपने आचार में जो बदलाव महसूस कर सकता है वह किसी और भाषा से मुश्किल से प्राप्त होता है । हिंदी के बड़े कवि श्री भारतेंदु हरिश्चंद्र ( जिनके नाम से हिंदी साहित्य में भारतेंदु युग चला ) उनका कहना है

 

 

                                                                     निज भाषा उन्नति अहै,

                                                                     सब उन्नति को मूल ।

                                                                   बिन निज भाषा ज्ञान के,

                                                                    मिटन न हिय के सूल’।।

 

अर्थात  जब व्यक्ति निज भाषा में कुछ सीखता है तो उसे वह ज्ञान जीवन पर्यंत याद रहता है ।

ज्ञान की परिभाषा…….

आपका अगला प्रश्न मुझसे हो सकता है कि ज्ञान क्या होता हैं या ज्ञान कहते किसे हैं ?

आपकी जानकारी के लिए बता दूं तो ठीक यही प्रश्न पंचवटी में लक्ष्मण जी ने राम से पूछा था कि “प्रभु ज्ञान किसे कहते हैं ? ”

तो प्रभु श्री राम ने जो कुछ कहा उसे गोस्वामी तुलसीदास जी ने कुछ इस प्रकार लिखा है कि

ग्यान मान जहँ एकउ नाहीं।

देख ब्रह्म समान सब माहीं।।

अर्थात- ज्ञान उसको कहते हैं- जहां मान न हो अर्थात् जो मान-अपमान के द्वन्द्व से रहित हो और सबमें ही जो ब्रह्म को देखे। ज्ञान के द्वारा तो ईश्वर की सर्वव्यापकता का अनुभव हो जाता है तो सबमें भगवान को देखने लग जाता है।

प्रभु श्रीराम के द्वारा लक्ष्मण को दिए गए इस उत्तर से उन्हें ज्ञान की परिभाषा का ज्ञात हुआ आशा है आपको भी इससे ज्ञान के बारे में कुछ नया जानने को मिला होगा ।

शिक्षा एवं संसार…….

हमारे समाज में इस बात की बहुत गलत धारणा बनी हुई है कि ज्ञान हमें सिर्फ शिक्षा से प्राप्त होता है और शिक्षा हमें हमारे विद्यालय की चारदीवारी के अंदर मिलती है मगर यदि हम थोड़ा गहराई में जाएं और ध्यान से देखें तो हमें पता लगेगा कि शिक्षा विद्यालय की चार दीवारो से ज्यादा हमें बाहर के वातावरण में अनुभव के द्वारा मिलती है मिसाल के तौर पर आपने यह किवदंती अवश्य सुनी होगी कि महात्मा बुद्ध को शिक्षा एक बरगद के पेड़ के नीचे प्राप्त हुई ।

अगर हम इस बात को समझ पाए तो हमें समझ आता है कि व्यक्ति का अनुभव व्यक्ति का सबसे बड़ा गुरु होता है और जैसा की चाणक्य  ने कहा है कि

“इंसान के पास इतना समय नहीं कि वह गलतियां करें और उससे सीख ले उसे दूसरों की गलतियों से सीख लेनी चाहिए ”

गलती करके सीखने का जो ज्ञान है उसे अनुभव कहते हैं और गलती करके सीखी हुई बात आपकी जीवन में बहुत काम आती है और इंसान की तो फितरत ही होती है गलती करना बस कुछ होते हैं जो उन गलतियों से सीख लेते हैं और कुछ होते हैं जो उन गलतियों को सीख लेते हैं। गलतियां सब करते हैं पर उनसे सीखना सबके बस की बात नहीं है ।

मिसाल के तौर पर मैं अपने गांव में छोटे-छोटे बच्चों को देखता हूं जो की बहुत सी गलतियां करते हैं मगर कुछ बच्चे अपनी उन्हीं गलतियों से सीख लेते हैं और कुछ उन्हें दोहराने लगते हैं परिणाम स्वरूप उन्हें इसका दंड अपने माता-पिता से झेलना पड़ता है मगर आदत तो आदत होती है इतनी आसानी से आदत बदल ना व्यक्ति के हाथ में होता तो आज हर घर में राम होते ।

आपने भी अपने बचपन में उदाहरण जरूर सुना होगा कि छोटा बच्चा जब एक बार रोटी से जल जाता है तो दोबारा गरम रोटी के पास अपने हाथ को ले जाने से कतराता है क्योंकि उसे एक बार जलने से यह ज्ञान प्राप्त हो गया की दोबारा इस वस्तु को तब तक नहीं छूना है जब तक इसमें से भाप निकलना ना बंद हो जाए फिर उसकी मां को उसे मना नहीं करना पड़ता कि बेटा मत छुओ मगर जब वही बच्चा बड़ा हो जाता है तो वह दरिया करता है और उन्हें भूल जाता है इसी वजह से वह सीखने में और ज्ञान प्राप्त करने में पीछे रह जाता है। और फिर वही बच्चा हमारे समाज में पैसा कमाने के लिए उल्टे सीधे कदम उठाता है।

 

किताबें यह सब अनुभव यह सारी बातें हमें महसूस करावा देती हैं मैं आपको उस परिवेश से जोड़ने का जरिया होती हैं जिसमें आप कभी गए ही नहीं ।

तभी कहा जाता है कि किताबें आपके मित्र हैं मगर आज कल यह बातें मॉडर्न जमाने में इतनी बोरिंग हो गई हैं की इसे सुनते ही इंसान को नींद आनी शुरू हो जाती है ।

समाज में किताबों की भूमिका…….

इस अवस्था को बदलिए और किताबों को अपने जीवन में लाइए आप पाएंगे आपका जीवन पहले से और बेहतर हो रहा है और यदि आपको लगता है कि आप पहले से ही बेहतर हैं तो किताबें आपको बेहतरीन बना देंगी यह सच में आपकी मित्र हैं, थी, और रहेंगी भी ।

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